What is Sarva Shiksha Abhiyan?
सर्व शिक्षा अभियान क्या है?
आज हर भारतीय के मन में यह प्रश्न है, कोई भी इस सवाल का एक उचित जवाब नहीं ढूंढ पा रहा है। यह तो सबको पता है कि यह योजना प्रत्येक भारतीय को साक्षर बनाने के लिए है, परंतु इसका क्रियान्वयन शायद सही ढंग से नहीं किया गया या हमारा सिस्टम इस तरह का है कि सर्व शिक्षा अभियान का जो लक्ष्य था, उसका मतलब ही शायद बदल दिया गया। सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने सन 2001-2002 में की थी।
अटल जी की सोच थी कि यदि हमारा देश साक्षर होगा, हर भारतीय नागरिक पढ़ा-लिखा होगा, तभी हमारा देश प्रगति कर सकता है। इसी दिशा में उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की थी। इसके अंतर्गत 2010 तक प्रत्येक नागरिक को साक्षर करने का प्रावधान था, परंतु 2019 तक भी उनका सपना पूरा नहीं हो सका है। सर्व शिक्षा अभियान आज लोगों को एक झुनझुना सा लगता है, जिसमें सरकार की तरफ से तो प्रयास किए गए परंतु शायद हम इसके लिए तैयार नहीं हैं। यह हमारी सोच कहीं न कहीं विकृत हो गई है। यदि एक तरफ रिकॉर्ड में साक्षरता का स्तर बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ शिक्षा का स्तर गिरता चला गया है। आइए देखते हैं कि इसके क्या-क्या कारण हैं।
एक मुख्य कारण यह रहा कि स्कूलों का निर्माण तो सरकार ने करा दिया, परंतु मुख्य मुद्दा अध्यापकों की नियुक्ति का था। उसके लिए सरकार ने बिना प्रशिक्षण के 12वीं पास लोगों को प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा मित्र के रूप में नियुक्त कर दिया, जो कि एक अस्थाई व्यवस्था थी। यह एक ऐसा कदम था जिसका सबसे बड़ा प्रभाव प्राथमिक शिक्षा पर पड़ा। यह बिल्कुल इस तरह से था जैसे कि रेत की मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य हो। सरकार की सोच थी कि शिक्षामित्र रूपी रेत में एक या दो शिक्षक रूपी चिकनी मिट्टी मिल जाएगी तो अच्छी क्वालिटी के अच्छे बर्तन तैयार हो सकते हैं, क्योंकि क्वालिटी प्राथमिक शिक्षा ही बच्चे के भविष्य का निर्माण करती है। बच्चा यदि अच्छी प्राथमिक शिक्षा पाता है तो वह आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होता है तथा उसमें कुछ करने की इच्छा जागृत होती है, और यदि उसकी प्राथमिक शिक्षा का स्तर खराब होता है तो वह पढ़ाई-लिखाई से दूर भागने लगता है। उसे लगता है कि मैं जीवन में कभी पढ़ नहीं सकता। मेरा खुद का अनुभव है, मैंने ऐसे लोगों को प्राथमिक स्कूल पास करते देखा है जो कि अपना नाम भी ढंग से नहीं लिख सकते हैं। 100 तक की गिनती उन्हें याद नहीं है। प्राथमिक हो या हाई स्कूल, शिक्षा का स्तर बेहद गिर गया है। हाई स्कूल पास कर चुके कुछ बच्चे अपना नाम दो भाषाओं में नहीं लिख सकते। ऐसा साक्षर भारत कहां जाएगा आप खुद सोच सकते हैं।
शिक्षा का स्तर गिरने का एक मुख्य कारण यह है कि कोई भी शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाता है। मुझे यह कारण समझ नहीं आता। या तो हमारे शिक्षक सरकारी स्कूल को विद्यालय नहीं समझते हैं, या उन्हें लगता है हम इस योग्य नहीं हैं कि अपने खुद के बच्चे को भी पढ़ा सकें। अन्यथा कोई कारण मेरी समझ में नहीं आता। शायद शिक्षक एक सरकारी स्कूल में नौकरी करते हैं केवल वेतन पाने के लिए। शिक्षा से उनका कोई वास्ता नहीं है। इसलिए शिक्षा के लिए अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं, जबकि हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को सबसे प्रथम स्थान दिया गया है। ऐसे में यदि गुरु अपने गुरुकुल में अपने बच्चे को ही पढ़ाना नहीं चाहते, तो गुरुकुल के शिक्षा का स्तर क्या रह गया है आप सोच सकते हैं। सरकार ने लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मिड डे मील की शुरुआत की, ताकि लोगों को स्कूली शिक्षा की तरफ आकर्षित किया जा सके। मेरे ख्याल से यह एक अच्छा कदम था, क्योंकि काफी सारे लोग जो अशिक्षित हैं, उनके पास जीविका के पर्याप्त साधन नहीं हैं, तथा अशिक्षित होने के कारण बहुत सारे बच्चे पैदा करते हैं, जिससे उनके ऊपर जीविका चलाने का दबाव होता है, और वह अपने छोटे-छोटे बच्चों को काम पर लगा देते हैं। शायद क्योंकि एक वक्त का खाना मिलेगा इसलिए वह अपने बच्चों को स्कूल में भेज दें, परंतु शायद आज हमारे प्राथमिक शिक्षकों ने भी यह मान लिया है कि वह केवल बच्चों को खाना खिलाने के लिए हैं, शिक्षा देने के लिए नहीं। इसलिए शायद बच्चों को मिड डे मील तो मिलता है, परंतु अच्छी शिक्षा से वह अभी भी दूर हैं।
सरकार के साथ हमारे अध्यापक वर्ग की यह जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा के स्तर को ऊपर लेकर आएं। यह तभी हो सकता है जब एक शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजें, क्योंकि हमारे यहां गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महादेव है, गुरु ही सब कुछ है, की संस्कृति रही है। गुरु को सर्वोपरि माना गया है। ऐसे में यदि गुरु भेदभाव करता है तो बाकी समाज पर इसका क्या फर्क पड़ेगा। क्या असर पड़ेगा क्योंकि यदि एक शिक्षक के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ेंगे, तो सारा समाज अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने के लिए प्रेरित होगा। अन्यथा समाज में यह सोच पनपती है कि शिक्षक या तो अपना काम सही ढंग से नहीं कर रहे हैं, या फिर आप पर कोई प्रश्न है। इसी वजह से सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाते हैं।
सर्व शिक्षा अभियान सरकार का एक महत्वपूर्ण कदम है। यह हम सभी का एक दायित्व बनता है कि हम सभी सरकार के इस कदम में सहयोग दें और एक शिक्षित और सुदृढ़ भारत का निर्माण होते हुए देखें।
mulcher rotor balancing
Mulcher Rotor Balancing: A Poetic Journey
In the realm of machines, where power meets precision, lies the art of mulcher rotor balancing, a vital ritual enveloped in a blend of technology and care. It whispers promises of enhanced performance, extending the lifelines of equipment and nurturing their steadfast functionality through the dance of dynamic equilibrium.
The Essence of Balancing
Amidst the hum of engines and the whir of blades, the need for rotor balancing emerges as a silent guardian against discord and disarray. Ensuring smooth operation, the process reduces vibrations that threaten to wear down bearings and burden the delicate components of machinery. It is a symbiotic relationship where balance begets longevity, making it an essential endeavor for every mulcher operator.
Preparing for the Balancing Dance
Before the balancing begins, a meticulous inspection unfurls like the first rays of dawn. The bearings must be cradled in care, checked for play, while the housing demands scrutiny, free from cracks that might mar the machinery’s grace. Bolted connections are tightened with the assurance of trust, and any extraneous structures, such as the push frame and front curtain, are either lovingly welded or removed, ensuring no interference disrupts this delicate ballet.
The Balancing Process Unveiled
With the stage set, we approach the sacred art of balancing the mulcher rotor with the revered Balanset-1A, the embodiment of modern ingenuity. The process unfolds in a series of carefully orchestrated movements. Vibration sensors are placed with purpose, perpendicular to the axis of rotation, while the magnetic stand cradles the tachometer, poised for duty.
Reflective tape sparkles on the rotor or pulley, guiding the rotation sensor as it reads the rhythms of motion. The sensors, like vigilant sentinels, connect to the Balanset balancer, which in turn links to a laptop, the conductor of this mechanical symphony. As the software awakens, a two-plane balancing dance begins, inviting the rotor data into its embrace.
Measuring the Initial Vibrations
The initial vibrations echo a story waiting to be told, revealing the rotor’s hidden imbalances. Calibration weight stands ready, its position determined with calculated precision in the first plane. A gentle nudge sends it spinning for a measurement that weighs the energy of motion. This is but a step, for the weight must traverse to the second plane, where new readings unfold, whispering secrets of necessary adjustments.
Data Revelation and Corrective Measures
The software, a wise sage, analyzes the accumulated data, offering insights into the corrective path. It guides the placement of weights, revealing how much and at what angle they must find solace upon the rotor. With heartbeats of anticipation, the calibration weight is removed, and corrective weights find their new home, anchored in the precision demanded by the software’s decree.
The Final Spin
As the final rotor spin sings its song, the balancer listens intently, discerning successes and flaws alike. Further adjustments may beckon, a testament to the pursuit of perfection that characterizes this noble craft. Each turn of the rotor becomes a dance of refinement, striving for the serene harmony of balance.
The Tools of the Trade
To embark on this journey of mulcher rotor balancing, one must be equipped with the finest instruments. The Balanset-1A, a portable balancer and vibration analyzer, is the heart of this operation. Accompanied by two sensitive vibration sensors that capture the tiniest whispers of vibrations, it ensures accuracy in every measurement. A laser tachometer stands ready, a beacon of precision measuring the cadence of the rotor’s rotation with grace.
The magnetic stand cradles the optical sensor, allowing it to survey the rotor’s movement without contact, preserving the integrity of the balance. The scales, precise and dependable, remain ever vigilant in weighing the corrective weights, ensuring each action is deliberate and measured. The specialized software provides a window into the balancing parameters, a tapestry of data woven intricately with the advice of experience.
A Journey Worth Taking
The journey of mulcher rotor balancing is not merely a task; it is a pilgrimage towards perfection, a commitment to respecting the machinery that serves us. Each step taken, each measurement made, reflects a deep reverence for the art of balance, echoing through the operational harmony that follows.
As we embrace the dynamic world of mulchers, let us not forget the power held within the delicate poetry of rotor balancing. In the silent lull of a perfectly functioning machine, feels the pulse of precision, the worth of diligence, and the magic of machines in their finest form.