Thinking of Life

जबसे सभ्यता का उदय हुआ है, तभी से मनुष्य अपनी सभ्यता में ज्ञान की खोज करता रहा है, और उसे आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित करता रहा है, जिससे कि उसके द्वारा इकट्ठा किया गया ज्ञान आने वाली पीढ़ी के उपयोग में लाया जा सके| हमारे पूर्वजों ने प्रत्येक विषय पर बहुत गहरी रिसर्च की जिसमें से काफी कुछ हम सहेज कर रख पाने में सफल रहे, जबकि काफी कुछ हम सहेज पाने में असफल रहे| कहां जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय संसार के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है, और वहां पर संसार का सबसे बड़ा पुस्तकों का जखीरा था| जिसमें बहुत ही ज्ञानवर्धक पुस्तकें उपलब्ध थी| परंतु बाहरी आक्रमणकारी उन पुस्तकों को या तो चुरा कर ले गए, या फिर उनको नष्ट कर दिया, जिससे कि हमारे द्वारा प्राचीन काल में की गई बहुत सारी खोजें नष्ट हो गई| अब क्योंकि हम पूर्व में की गई खोजो को दोबारा से पुनः प्राप्त नहीं कर सकते, परंतु आज के समय में कुछ लोगों के द्वारा की जा रही नई नई खोजें अथवा नए-नए प्रयोगों को जन जन तक पहुंचाने के लिए प्रयास कर सकते हैं|

इसी को ध्यान में रखते हुए हमने यह देखा कि हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग जोकि संपन्न होते हुए भी ज्ञान के स्तर पर आज भी निर्धन ही है, जबकि कुछ वास्तविक निर्धन परिवारों में कुछ लोग ज्ञान के अति धनी हैं| उनके पास अपनी खुद की बौद्धिक संपदा होने के बावजूद उन्हें समाज में वह स्थान प्राप्त नहीं है, जोकि होना चाहिए मेरे इस प्लेटफार्म पर मेरी कोशिश यही रहेगी, कि मैं आयुर्वेद ,योग ,सौंदर्य एवं स्वास्थ्य ,अध्यात्म ,कौशल विकास, व्यापार की जानकारी ,क्षेत्रीय जानकारी ,शिक्षा की जानकारी एवं नए-नए विचारों की जानकारी के साथ ही साथ राजनीतिक उठापटक एवं ऐतिहासिक घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए, कि समाज में क्या नया हो रहा है तथा इंटरटेनमेंट करने के लिए कौन-कौन से नए साधन है, एवं किस प्रकार से कार्य कर रहे हैं| साथ ही खेती की जानकारी, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स की जानकारी,रोजमर्रा के समाचार एवं ई गवर्नेंस से जुड़ी टेक्निकल जानकारी भी अपने इस प्लेटफार्म पर जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत रहा जाए|

आज का समय सोशल मीडिया का युग है आज के समय में 3G के बाद 4G और अब ऑप्टिकल फाइबर के द्वारा कम से कम 100 एमबीपीएस से लेकर के 1tb तक की इंटरनेट स्पीड जनता को मिलना सुनिश्चित किया गया है| मैं नहीं मानता की सूचना प्रौद्योगिकी की इतनी क्रांति होने के बाद भी कोई व्यक्ति यह आरोप लगाए कि उसके पास सही एवं सटीक जानकारी नहीं पहुंच पा रही है| क्योंकि सरकार जितनी भी योजनाएं लॉन्च कर रही है प्रत्येक योजना में एडवर्टाइजमेंट का बजट होता है| और आज के समय में एडवर्टाइजमेंट के बजट में सोशल मीडिया पर होने वाले खर्चे भी सम्मिलित कर लिए जाते हैं| इसका सीधा सा मतलब यह है यदि व्यक्ति चाहे तो वह इंटरनेट से प्रत्येक विषय पर जानकारी प्राप्त कर सकता है| लेकिन उस जानकारी को तथ्यात्मक रूप में जनता तक पहुंचाने का कार्य एक क्रिएटर करता है| ताकि वह इस इंफॉर्मेशन को कन्वर्ट कर सके और उसको ध्यान से सुने व समझ पाए

जहां तक बात भारत की है तो भारत में संपूर्ण संसार की करीब 18% जनसंख्या रहती है और यह सभी लोग पढ़े लिखे न होने के बावजूद भी करीब 50 करोड़ लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं इससे यह सिद्ध होता है इंटरनेट की दुनिया में भारत कितना बड़ा मार्केट है| यदि यह सब स्मार्टफोन यूजर अच्छे कंटेंट अर्थात क्वालिटी कंटेंट को सर्च करेंगे तो अपनी स्किल को बढ़ा सकते हैं| साथ ही साथ यदि यह घटिया कंटेंट को सर्च करेंगे तो इनकी कार्यक्षमता में गिरावट भी दर्ज की जा सकती है| इन दोनों ही पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है, एवं भारत के विकास में सोशल मीडिया के महत्व को समझते हुए, उन्हें क्वालिटी कंटेंट उपलब्ध कराना हमारी जिम्मेदारी बनती है|

हमारे पास प्रकृति के असीमित भंडार हैं। परंतु आज के समय में मनुष्य तथा विज्ञान प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। इसके दो पहलू हैं

पहला :- हम तरक्की कर रहे हैं। इसीलिए प्रकृति के संसाधनों का दोहन जरूरी है।

दूसरा :-विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। क्योंकि जब पृथ्वी ही नहीं रहेगी तब जीवन की कल्पना करना भी कठिन है।क्योंकि जीवन तभी तक है जब तक प्रकृति है, पृथ्वी है। इसीलिए सोचने का विषय है। कि कौन सा पहलू सही है और किस पहलू में किस किस तरह के बदलाव हो सकते हैं।हमारे समाज पर इसका क्या क्या प्रभाव पड़ रहा है, हमारा सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक ढांचा भी इस विनाश के लिए जिम्मेदार है। जहां तक हमारे सामाजिक ढांचे का संबंध है तो संसार में अनेकों प्राचीन सभ्यताएं पैदा हुई उनमें से कुछ का विनाश हो गया और कुछ आज भी मौजूद है। जिन सभ्यताओं का विनाश हुआ उनमें प्राकृतिक आपदा एक महत्वपूर्ण कारण है। वहीं पर अनेकों धर्म ग्रंथ इस ओर भी इशारा करते हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में हमारी प्राचीन सभ्यताएं आज की सभ्यताओं से कहीं अधिक उन्नत एवं विकसित थी। लेकिन उसी ज्ञान के कारण उनकी विनाश लीला लिखी गई। जिसको आज तक हम लोग दोबारा से प्राप्त नहीं कर पाए।

संभावना इस बात की भी है कि विज्ञान का प्रयोग जीवन में सुधार के लिए होना चाहिए ना कि वर्चस्व के लिए यदि हम उन्नत हथियारों की होड़ में ऐसे विनाशक अस्त्र-शस्त्र उत्पन्न कर लेंगे जिससे समाज एवं सभ्यता को खतरा हो। तो वह दिन दूर नहीं जब हम स्वयं ही अपनी सभ्यता को नष्ट कर लेंगे।

जीवन जीने के लिए पैसों की आवश्यकता है या फिर यूं कहें की अति आवश्यकता है। लेकिन अच्छा जीवन जीने में केवल पैसों की आवश्यकता होती है यह सच नहीं है| कुछ लोग अपना पूरा जीवन सामाजिक कल्याण के लिए कार्य करते रहते हैं| उन्हें इसी में सुख मिलता है। वहीं पर कुछ लोग केवल अपने पैसों के लिए कार्य करते हुए अपने पूरे जीवन को खत्म कर देते हैं। लेकिन आत्म संतुष्टि के लिए उनके पास कोई भी वस्तु अथवा कारण नहीं है।

किसी भी बात पर आंखें मूंदकर विश्वास करना बेवकूफी होती है। एक इंसान होने के नाते प्रत्येक इंसान का यह दायित्व है कि वह तर्क करें कि ऐसा होता है तो क्यों और अगर ऐसा नहीं होता है तो क्यों नहीं होता है। क्योंकि धर्म में तर्क का कोई महत्व नहीं होता है। लेकिन जीवन में तर्क का होना उतना ही जरूरी है जितना की आग में प्रकाश का होना।

मानव इस पृथ्वी पर मौजूद सभी वस्तुओं एवं प्राणियों में सर्वोत्तम है। उसे इस बात को न केवल समझना चाहिए बल्कि इस बात की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए कि इस संपूर्ण सृष्टि की देखभाल एवं रखरखाव उसी को करना है।बाकी सारे जीवो के जीवन पर उसकी हरकतों का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पड़ता ही है। आज अनेकों जी्व अपने आशियाने को खो चुके हैं और अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। इस सबके पीछे मनुष्य की आंखें मूंदकर की जाने वाली डेवलपमेंट ही जिम्मेदार है।

और अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि इंसान को मानवता के बारे में सोचना चाहिए। जहां पर मानवता नहीं वहां पर विज्ञान एक अभिशाप से कम कुछ भी नहीं। यह हमारे समाज के मूल्यों पर निर्भर करता है कि हम लोग सामाजिक होकर जीवन जीना चाहते हैं या फिर किसी जानवर की तरह सरहदों में बंद कर एक दूसरे की जान के दुश्मन बनकर जो कि वास्तविक जीवन के अनुरूप नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *